Monday, October 26, 2020

बिहार विधान सभा चुनाव-2020 में भाकपा (माले) की राज्य के मतदाताओं से अपील

 अवसरवादी, जनविरोधी एवं जनतंत्र का माखौल उड़ाने वाले फासीवादी भाजपा-जदयू गठबंधन को पराजित करें!

राजद, कांग्रेस एवं संसदीय वामपंथी दलों के महागठबंधन के चुनावी अवसरवाद का पर्दाफाश करें!

कम्युनिस्ट क्रांतिकारी, वामपंथी एवं जनवादी दलों के उम्मीदवारों को चुनाव में वोट देकर विजयी बनाएँ!

जहाँ भाजपा-जदयू गठबंधन के खिलाफ जनपक्षधर प्रत्याशी खड़े नहीं हों,

वहाँ फासीवादी ताकतों को परास्त करने के लिए सबसे सशक्त उम्मीदवार को अपना समर्थन दें!

 

 

प्रिय मतदाताओं,

    बिहार विधानसभा के चुनाव की घोषणा हो चुकी है। कोरोना महामारी के संकटों से जूझ रही जनता के समक्ष एक और चुनौती आ खड़ी हुई है। राज्य के जागरूक मतदाताओं को लुभाने के लिए तरह-तरह के बहरूपिए चुनावी वायदों की लम्बी-चौड़ी फेहरिस्त लेकर आपके बीच उपस्थित होंगे और आपको दिग्भ्रमित करने एवं ठगने का भरपूर प्रयास करेंगे। ऐसे समय में आप मतदाताओं के सामने अपने सही प्रतिनिधि के चुनाव की महत्वपूर्ण जिम्मेवारी आ गयी है। हम जानते हैं कि अधिकांश प्रत्याशी नीतियों, कार्यक्रमों एवं अपने विगत कार्यों के आधार पर वोट माँगना पसंद नहीं करते हैं और येन-केन-प्रकारेण चुनाव जीत जाने की बेताबी में हर तरह की तिकडम एवं मौकापरस्ती के लिए तैयार रहते हैं। फलतः जाति एवं धर्म की जहरीली आंधी बहायी जाती है और पैसे एवं लोभ-लालच का खुल्लमखुल्ला प्रदर्शन किया जाता है। और ये सब कारगुजारियाँ सबसे ज्यादा शासक वर्गीय दलों एवं गठबंधनों के दवारा ही की जाती हैं और कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता, क्योंकि जिनके कंधों पर इसकी रोकथाम का संवैधानिक दायित्व है, वे स्वयं वर्गीय पक्षधरता की शिकार बन अधिकांश मामले में मौन धारण कर लेते हैं या खानापूरी कर चुपचाप बैठ जाते हैं।

    साथियों ! आपको याद होगा कि पिछला विधानसभा चुनाच (2015 का चुनाव) जदयू ने राजद के साथ मिलकर लड़ा था तथा जीत के बाद सरकार बनायी थी और फिर बीच में ही गठबंधन को एकतरफा भंग करते हुए भाजपा के सहयोग से पुनः सरकार बना ली। यह जनादेश का अपमान था और अवसरवादी राजनीति की पराकाष्ठा थी। बिहार की जनता ने नीतीश कुमार के इस राजनीतिक आचरण को नजदीक से देखा है और उसके 'ताप' को महसूस किया है। इस परिघटना ने न सिर्फ अवसरवादी पूँजीवादी राजनीति की कलई खोलकर रख दी, बल्कि साथ ही इसने नीतीश कुमार की अविश्वसनीयता तथा भाजपा एवं जदयू की सिद्धांतविहीनता व अवसरवादिता को भी उजगार कर दिया।

    केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा गठबंधन की सरकार के पिछले छः वर्षों से अधिक के शासन काल में लगातार फूट, वैमनस्य एवं नफरत की राजनीति को हवा दी गयी है और साम्प्रदायिकता, अंधराष्ट्रवाद एवं सुद्धोन्माद की आंधी बहाकर देश एवं समाज के माहौल को विषाक्त बनाया गया है। आज नरेन्द्र मोदी के शासन काल में मजदूरों, किसानों एवं जनता के अन्य तबकों के अधिकारों पर खुलेआम हमले किये जा रहे हैं और नागरिक स्वतंत्रता एवं जनतांत्रिक अधिकारों का माखौल उड़ाते हुए देश पर फासीवादी तानाशाही थोपने की संघ परिवार की साजिश को अमली जामा पहनाने की अनवरत कोशिश की जा रही है। ज्ञातव्य है कि केन्द्र सरकार द्वारा मजदूरपक्षीय श्रम कानूनों में बदलाव करते हुए पूंजीपक्षी सुधार एवं हाल के दिनों में रेलवे सहित कई सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में निजीकरण को बढ़ावा देने तथा विनिवेशीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का काम किया गया है। और हाल ही में संसद द्वारा जनविरोधी किसान एवं कृषि क्षेत्र से सम्बन्धित तीन विधेयकों" को पारित कराकर केन्द्र की भाजपा सरकार ने यह साबित कर दिया है कि असल में उनका इरादा किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को समाप्त करना और कृषि को कारपोरेट जगत के हवाले करना है। केन्द्र सरकार के इन कदमों ने उसके मजदूर-किसान विरोधी असली खूखार चेहरे को उजागर कर दिया है। भाजपानीत केन्द्र सरकार के अबतक के शासन काल में दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों एवं अन्य वंचित समुदायों को विशेष उपेक्षा, अवमानना एवं हमले का शिकार बनाया गया है। भीमा कोरेगांव मामले में केन्द्र सरकार के दमनकारी रवैये और हाल में उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में एक दलित युवती के साथ गाँव के अगड़ी जाति के कुछ मनबढू एवं दबंग युवकों द्वारा किए गए सामूहिक बलात्कार व शारीरिक प्रताड़ना एवं तत्पश्चात उसकी मृत्यु (यानी हत्या) के मामले में यूपी की भाजपाई योगी सरकार तथा उसके पुलिस-प्रशासन के गरीब व दलित विरोधी रूख ने साफ कर दिया है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इशारे पर चलने वाले भाजपा जैसे दल के लिए भारत के पूंजीवादी संविधान को स्वीकार कर दबे-कुचले लोगों की प्रतिष्ठा की रक्षा करना आज भी कितना मुश्किल भरा काम बन गया है। तभी तो संविधान की शपथ लेने के बावजूद मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ का मनु स्मृति वाला घोर सामंती मन-मिजाज बार-बार छलक पड़ रहा है और इस बात की गवाही दे रहा है कि यूपी में सच में आज गुण्डाराज है।

    आज देश की अर्थव्यवस्था भीषण संकट से गुजर रही हैं। बेरोजगारी पिछले 45 वर्षों में सबसे उच्चतम पायदान पर खड़ी है, महंगाई आकाश छुती जा रही है और वर्तमान वित्तीय वर्ष के प्रथम तिमाही में देश के सकल घरेलू उत्पाद के विकास दर में 23.9 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। जिन जनविरोधी नई आर्थिक नीतियों की शुरुआत 1991 में कांग्रेस पार्टी के शासन काल में पी. वी. नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री और मनमोहन सिंह के वित्त मंत्री रहते हुए हुई थी, उसको नरेन्द्र मोदी के भाजपाई शासन में चरम पर पहुंचा दिया गया है। आज देशी बडे पूंजीपतियों और अपने साम्राज्यवादी आकाओं के नग्न स्वार्थों की पूर्ति के लिए केन्द्र सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को नीलाम कर देने का मन बना लिया है। तभी तो फायदे में चलने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उदयमों एवं संस्थानों को औने-पौने दामों में निजी क्षेत्रों के हवाले कियाजा रहा है। रेलवे, जीवन बीमा निगम (एलआईसी), कोयला खदान, ओएनजीसी जैसे मुनाफे में चलने वाले उद्यमों व संस्थानों को .., प्राइवेट हाथों में सौंप देने या बेच डालने की कवायद सचमुच हतप्रभ करने वाली है! लेकिन 'मोदी है तो सब कुछ मुमकिन है' के जुमले का इस्तेमाल करने वाली पार्टी ने सच में इसे हकीकत में बदल डाला है।

    आज हमारे देश में एक ऐसी प्रतिक्रियावादी, जनविरोधी, साम्राज्यवादोरस्त पूंजीवादी सरकार केन्द्र की सत्ता में आसीन है जिसने अपने छ: वर्षों के शासन काल में देश में दमन एवं आतंक का माहौल कायम कर दिया है। इस शासन में तमाम पूंजीवादी जनतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर किया जा रहा है। सीबीआई, इंडी, न्यायपालिका (यहाँ तक कि सुप्रीम कोर्ट तक), चुनाव आयोग आदि-आदि की अपेक्षाकृत स्वायत्तता को समाप्त करने की पुरजोर कोशिश की जा रही है। स्वतंत्र मानी जाने वाली मीडिया आज 'गोदी मीडिया' में तब्दील हो गयी है। मोदी-शाह के इस निरकुंश व स्वेच्छाचारी शासन काल में राजनीतिक विरोधियों, खासकर जनवादी, प्रगतिशील तथा क्रान्तिकारी राजनीतिक शक्तियों को विशेष दमन का शिकार बनाया जा रहा है। एकतरफ भीमा कोरेगांव मामले में प्रो० सधा भारद्वाज, प्रो० आनन्द तेलतम्बडे, श्री गौतम नवलखा, प्रो० सोमा सेन जैसे दर्जन भर प्रख्यात बुद्धिजीवियों एवं सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियाँ की गई हैं तो दूसरी ओर पिछले फरवरी महीने में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए साम्प्रदायिक दंगों के असली गुनहगारों को खला छोडकर स्वराज अभियान के श्री योगेन्द्र यादव, सीपीआई (एम) के महासचिव श्री सीताराम येचुरी, जेएनयू की अर्थशास्त्र की प्राध्यापक प्रो० जयती घोष, रंगकर्मी श्री राहुल राय, कांग्रेस पार्टी के नेता श्री सलमान खुर्शीद तथा अन्य अनेक नामी-गिरामी निर्दोष सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं एवं बद्धिजीवियों को फर्जी मुकदमे में फंसाने की साजिशें की जा रही हैं। यह सबको पता है कि दिल्ली के साम्प्रदायिक दंगों में किनका हाथ है। लेकिन दंगाइयों को सरकारी संरक्षण प्रदान कर और दंगे की निन्दा करने वाले निर्दोष लोगों (जिन्होंने सीएए. एनआरसी एवं एनपीआर विरोधी न्यायपर्ण आंदोलन में भाग लिया था) को नामजद अभियुक्त बनाकर सरकार ने अपने खतरनाक मंसूबों को जाहिर कर दिया है। ये सारी कारगुज़ारियाँ नरेन्द्र मोदी सरकार के फासीवादी दमन की प्रतिगामी मुहिम की कलई खोल कर रख देती हैं, लेकिन फिर भी निर्लज्जता की सारी हदों को पार कर केन्द्र सरकार उसी दिशा में आगे बढ़ रही है।

    ऐसी ही फासिस्ट शक्तियों से नापाक गठजोड बनाकर 'सशासन बाबू' नीतीश कुमार बिहार में एक बार फिर सत्ता में काबिज होने की दावेदारी पेश कर रहे हैं। भागलपुर सृजन घोटाले और मुजफ्फरपुर बालिका आश्रय गृह यौन उत्पीड़न कांड के दाग अभी भी नीतीश सरकार के दामन से धुले नहीं हैं। कोरोना महामारी से निपटने में राज्य सरकार की अक्षमता, खासकर चिकित्सा सुविधाओं की बहाली एवं स्वास्थ्य सेवाओं की बढोत्तरी के मामले में सरकार की उदासीनता एवं कार्यकुशलता की कमी तो जगजाहिर है और बतफरोशी से उसे नहीं झुठलाया जा सकता। पिछले पन्द्रह वर्षों के अपने तथाकथित सुशासन काल में शिक्षा, स्वास्थ्य एवं बिजली जैसी आवश्यक सेवाओं के निजीकरण एवं व्यवसायीकरण को बढ़ावा देकर नीतीश सरकार ने उसे इतनी महंगी कर दिया है कि आम जनता को उसके दंश को विवश होकर झेलना पड़ रहा है। रिश्वत एवं भ्रष्टाचार के मामले में तो भाजपा-जदयू की डबल इंजन की सरकार ने बहुत पहले ही राजद एवं कांग्रेस को पछाड़कर अपनी 'श्रेष्ठता' साबित कर ली थी।

    राजद के नेतृत्व में काँग्रेस एवं संसदीय वामपंथी दलों का महागठबंधन भी चुनावी मुकाबले में है। 'सामाजिक न्याय' का मंत्रजाप करने वाला राजद अभी भी जाति एवं धर्म की बैशाखी के सहारे ही चुनावी वैतरणी पार करने और सत्ता में वापसी के मंसूबे पाल रहा है। आज भी उसका 'सामाजिक न्याय' वंशगत शासन की पैरोकारी और एक खास जाति के घेरे से बाहर निकलने पर हाँफने लगता है। कांग्रेस इतनी दुर्दशा के बावजूद वंशगत शासन की पैरोकारी की नीति छोड़ने को तैयार नहीं है और हाल के दिनों में तो हिन्दु वोटरों को रिझाने के लिए धर्मनिरपेक्षता की 'सर्व-धर्म समभाव' की गांधीवादी नीति से पीछे हटते हुए नरम साम्प्रदायकिता पर अमल करना शुरू कर दिया है। और लाल झंडा फहराने वाले संसदीय वामपंथी दलों ने चुनाव में अपनी स्वतंत्र दावेदारी को पेश नहीं कर और वामपंथी शक्तियों की एकजुटता की परवाह किए बगैर चंद सीटों की जीत की गारंटी के लिए शासक वर्गीय महागठबंधन का हिस्सा बनना ज्यादा फायदेमंद समझा है।

    ऐसे कठिन एवं मुश्किल भरे दौर में कम्युनिस्ट क्रांतिकारी, सच्चे वामपंथी एवं जनवादी शक्तियों का यह फ़ौरी कार्यभार बनता है कि फासिस्ट ताकतों एवं उनके संश्रयकारियों को शिकस्त देने के लिए सबसे पहले अपने को एकजुट एवं सुदृढ करें और फिर विनाश की उन काली अंधेरी ताकतों के खिलाफ एक मजबूत मोर्चेबंदी करें।

    इसी परिप्रेक्ष्य में हमारी पार्टी भाकपा (माले)-क्लास स्ट्रगल की बिहार प्रांतीय कमिटी वर्तमान बिहार विधानसभा चुनाव में सबसे पहले कम्युनिस्ट क्रांतिकारी शक्तियों, वामपंथी दलों एवं अन्य जनवादी व जनपक्षधर शक्तियों द्वारा खड़े किए गए उम्मीदवारों का समर्थन करने और उन्हें विजयी बनाने की अपील आम मतदाताओं से करती है। जहाँ ऐसे प्रत्याशी चुनाव के मैदान में नहीं खड़े हैं, वहाँ मतदाताओं को भाजपा-जदयू के मुकाबले में खड़े सबसे मजबूत उम्मीदवार को वोट देना चाहिए।

    अंत में हमारी पार्टी की बिहार इकाई इस प्रदेश के मतदाताओं से आह्वान करती है कि वे जाति-धर्म की संकीर्णताओं से ऊपर उठकर और हर तरह के लोभ-लालच को धता बताते हुए एक जागरूक नागरिक की भूमिका अदा करते हुए इस महत्त्वपूर्ण चुनाव में देश, राज्य एवं समाज के हित में भाजपा-जदयू के गठबंधन को पराजित करें और फासीवादी ताकतों के खतरनाक मंसूबों को चकनाचूर कर दें।

    वर्तमान बिहार विधानसभा चुनाव में हमारी पार्टी भाकपा (माले) ने चार विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्याशी खड़े किये हैं।

91 - बोचहां (अ॰जा० सुरक्षित) - कॉ. उदय चौधरी       208 - सासाराम - कॉ. मुनेश्वर गुप्ता

209 - करगहर (रोहतास) - कॉ. रिंकू कुमारी            206 – चैनपुर (कैमूर) - कॉ. प्रहलाद बिंद


                                                    क्रांतिकारी अभिवादन के साथ

                   भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी)-क्लास स्ट्रगल

                                    बिहार प्रांतीय कमिटी

                               सम्पर्क मो० : 9430060092,9931857997, 7061905956, 7050966037

दिनांक : 09-10-2020

 

अरविन्द सिन्हा 103 नीलगिरी भवन, बोरिंग कैनाल रोड, पटना-800 001 द्वारा भाकपा (माले)-क्लास स्ट्रगल को बिहार प्रातीय कमिटी के लिए प्रकाशित और महेश्वरी प्रिन्टर्स, नया टोला, पटना-800 004 से मुद्रिता संख्या-30 हजार प्रतियाँ मात्र ।

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